Sunday, July 25, 2021

अनुवाद कविता ( हिन्दी ): दुर्घटित स्वप्न की चोटी से - मातृका पोखरेल

 

सपने में बारबार देखा हुआ आदमीको 

ढुंढने निकले हुए अब एक अर्सा हो गया

आलसी लग गया है चलतेचलते 

सुस्ती बढ गई है चलतेचलते

सपने में देखा हुआ एक पूरा आदमी

कभी मेरे सामने आया नहीँ

हमेसा हकीकत में अलगथलग दिखाई दिया ।


सपने में देखा हुआ एक पूरा आदमी

हकीकत में आँख के बगैर उपस्थित होता है 

कभी आता है हाथ के बगैर 

कोही सामने आता है पैर के बगैर 

ये सब लोग मलिन चेहरे लेकर कहते हैं

तुम नें सपने में जिसको देखा था, वह मैं ही हूँ । 


लेकिन मैनें सपने में जिस आदमी को देखा था

हकीकत मे मैं उस से मिला ही नही हूं 

मुझे ये लोगों से कभी विश्वास नहीं हुआ

सभी से प्रतिवाद कर रहा हुं, कह रहा हुं

तुम मे से कोई भी वह आदमी नहीं हो, 

मैने सपने में देखा हुआ वह आदमी 

- तुम लोग नहीं हो


एक आता है, कभी

खोया हुआ नाक लेकर 

उससे मै खोया हुआ नाक की बात करता हूं

वह घायल त्वचा दिखाता है और कहता है  

मेरा नाक यही है 

उसका यह बेढवका कुतर्क से

मै पूरापूर असहमत हूं

सपने में एक पूरा आदमी था देखा हुआ

हकीकत में सिर्फ आधे अधूरे ही देख रहा हूं


आजकल, इस सब से खतरनाक 

और एक आदमी आता है 

बिना शरके मुर्कट्टा की तरह

मै उस का खोया हुआ शरकी बात करता हूं 

वह उसका बडा हुआ विकराल तोंद दिखाकर कहता है 

मेरे शरका काम भी यही तोंद करता है । 


बिना शरका मुर्कट्टाकी तरह वह आदमी

बारबार सपनेमें आकर मुझे काट रहा है 

आजकल मुझे सपने पर से विश्वास उठ रहा है 

मेरे सपनें क्रमिक रूप से खण्डित हो रहे हैं । 


आजकल मैं

खतरनाक समय से निरन्तर प्रतिशोध कर रहा हूं 

मै इस समय, खुद से डर रहा हूं 

मुझे बखूबी मालुम है  

सपनों से विश्वासका उठ जाना खुद दुर्घटित होना है ।


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अनुवाद : विधान आचार्य

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