Sunday, July 25, 2021

अनुवाद कविता ( हिन्दी ) आइना - मातृका पोखरेल

 

आजकल मेरे आइने में

कोही दूसरे आदमी की तस्वीर दीखती है 


जीन्दगी भर 

जिसको गालियाँ देते देते थक गया था मैं 

और मुकदमा ठोंका था हर मोड पे उसे

वही आ जाता है बिन पूछे

मेरे आइने में । 


सुबह हाथमुँह धो जब देखता हूं आइना 

मैं कोही दूसरा ही दिखाई देता हूँ 

दाढी बना के देखता हूं खूद को 

दाढीवाला कोही दूसरा ही दिखाई देता है 

बस मामुली कपडे पहन कर देखता हूं आइना 

मै टाई सूट के ठांट मे दिखाई देता हूँ । 


हर रोज एक नयां आइना खरीद कर ले आता हूं

लेकिन कभी भी अपना 

असली प्रतिबिम्ब दिखाई ही नहीं दिया

मै तङ्ग आ चुका हूं, हर रोज देखनेवाला

अपने ही आइनाको देखकर ।


आजकल

आइने में खुद का चेहरा  

कभी तो दक्षिण तरफ के पडोसी के माफिक 

कभी तो उत्तर तरफ के पडोसी के माफिक

कभी एक अमरिकी जैसा 

कभी एक ठीकेदार की तरह  

कभी एक दलाल की तरह 

कभी किस से मिलता 

कभी किस से मिलता 

अब थोडी सी समय के लिये 

मैने आइना देखना भी बन्द कर दिया है 

आइना साथ में रखना भी छोड दिया है  


मेरे साथ मेरे दोस्त भी हैं

आजकल वे भी आइने को देखकर  

बहूत डर जाते है । 


आइने मे खुद का चेहरा खोये हुए हम 

लगातार छलफल कर रहे हैं


आजकल मैंने आइने में

खुद का चेहरा ही खो दिया है ।


OOO


अनुवाद : विधान आचार्य

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